Thursday, 25 September 2008

वो टूटे हम यूँ के तुझ बिन..

आज भी पलकों पे सजे,
आंसू मेरे सूखे नही हैं।
तू चूम ले आकर इन्हे,
इस आस में टूटे नही हैं,
ऐ खुदा कर कुछ रहम,
है विश्वास के वो,
झूठे नही हैं।

अब भी तेरे इंतज़ार में,
तकिये पे आँखें मूँद कर,
हर पल बदलते करवटें हम,
तनहा रात भर सोते नही हैं।

उसकी एक हँसी के लिए मीत,
अपनी ज़िन्दगी हमने बदल दी,
और वो भी अपनी "खुशी" संग,
मेरे मुखातिब होते नही हैं।

कुछ फटता है कलेजे में
कि जब आँखें सनम की,
आ जाती सपने में कभी
और हम सुकून-ऐ-दिल होते नही हैं.

3 comments:

Divesh said...

very touching.

Geetanjali said...

An emotional and beautiful poem!

Abhinav said...

kya baat hey